श्रीनारायण कहते हैं- पंथ ही हमारा श्रीअंग है पंथ का सेवाकार्य ही हमारी पुजा है।
सद्गुरु हमारी आत्मा और संत हमारा मन है।
इस प्रकार जो पंथ है वो ही हम हैं और जो हम हैं वही पंथ है।
अतः सर्वप्रकार से पंथ के हित चिंतन को ही हम सर्वश्रेष्ठ भक्तिभाव मानते हैं।-श्रीनारायण भक्ति पंथ

