अष्ट कलश अर्चन विधि

श्रीनारायण✨
अष्ट कलश अर्चन विधि
आम के आसन पर लक्ष्मीजी को विराजमान कर लें उनके चारों और 8 दिशा में कलश रख लेवें।
(500ml जल आ जाए इतने बड़े कलश लगेंगे)
दिशा के अनुसार कलश के जल में सामग्री डाले
1 – पूर्व दिशा के कलश में,
बड़, पीपल, गुलर , चंपा, अशोक, बिल्व, आम के पत्ते डालना।
2 – दक्षिण के कलश में,
कमल, दुर्वा, कुश की मिट्टी, सफेद और लाल चंदन का टुकड़ा, अक्षत, सरसों, तगर इत्यादि सामग्री डालें।
3 – पश्चिम के कलश में सोना, चांदी, गंगा या नर्मदाजी के दोनो तटों की मिट्टी, गाय का गोबर, जौं, धान के चावल और तिल डाले।
4 – उत्तर दिशा के कलश में,
आंवला, शतावरी, भृंगराज, सहदेवी, बच, बला औषधि डालें।
5 – ईशान कोण के कलश में,
पुष्प, केसर और रोली डालें।
6 – अग्नि कोण में,
बाबी खेत की मिट्टी (दीमक के घर की मिट्टी) डाले।
7 – नेऋत्य कोण में,
गंगा एवम नर्मदा का जल एवम मिट्टी डालें।
8 – वायव्य कलश में,
नागकेसर के फूल, कपूर, कमल के जड़ की मिट्टी डालें।

सभी कलशों में नाड़ा बांधे , कुमकुम का साथिया बनाकर कलशों का पूजन करें।
श्रीसुक्त के पाठ से क्रमशः कलश के जल से श्रीमहालक्ष्मी जी को स्नान कराएं।
स्नान के पश्चात चंदन चर्चित करें।
वस्त्र एवं कमल पुष्प अर्पण करें कुमकुम, अक्षत, इत्र, आभूषण आदि अर्पण करें।
इसके बाद धूप, दीप, खीर एवम अन्य नैवेद्य पधरावें।
श्रीसुक्त का पाठ करें।
श्रीमहालक्ष्मी अष्टकम का पाठ करें।
उसके बाद मे महालक्ष्मीजी को
सफेद गूगल का धूप अर्पण करें, आरती करें

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